रविवार, 1 नवंबर 2009

चेतन भगत की नई किताब

चेतन भगत की नई किताब टू states पढ़ी । अच्छी किताब है मौका मिले तो जरुर पढियेगा। अपनी तीसरी किताब के मुकाबले उन्होंने ये किताब कुछ बेहतर लिख दी है , या शायद बन पड़ी है। अपनी कहानी लिखने में माहिर चेतन इधर कुछ दिनों से चर्चा में है क्यूंकि कुछ लोगो का मानना है की अब चेतन इस से बेहतर किताब लिख नही सकते। देखते है की चेतन इस से अच्छा कर पाते हैं या नही । वैसे मैं यानि निर्मोही उनके लेखन से जितना परिचित हूँ ये कह सकता हूँ की इस से बेटर लिखने की क्षमता उनमे नही है। यह शायद उनकी कालजई रचना हो और सभी जानते हैं की कालजई रचना के बाद की रचने काल का ग्रास ही बनती है।

किताब को पढने के बाद ही प्रतिक्रिया दें।

शनिवार, 10 अक्तूबर 2009

आप सभी को दिवाली की शुभकामनाए

आई आई एम् सी में आजकल सन्नाटा छाया है। क्या है की आई आई एम् सी की रौनक छात्रावास आजकल खली हो गया है । सो हम भी चलें घर ॥ पर पटाखे फूटते रहेंगे , पढ़ना न भूले

"आई आई एम् सी के पटाखे"

शुभ दीपावली

हिन्दी विभाग के खुफिया

आख़िर वो कौन है जिसने कर रखा है हिन्दी पत्रकारों की नाक में दम। आख़िर कौन है वो जिसके कारण हिन्दी विभाग के गायकों की गायकी पर लग गई रोक ? आख़िर है कौन ? अब बता भी दो !

पर अफ़सोस नही बता सकता। कारण है , गंभीर कारण!
१ यह एक संयुक्त प्रयास था ।
२ हिन्दी विभाग के कुछ पदस्थ अधिकारी भी इसमे शामिल थे ।
३ इस प्रक्रिया को काफ़ी सोच समझने और विमर्श के बाद ही पुरा किया गया ।

दरअसल कुछ लड़कियों की यह शिकायत थी की यह गायकी अब धीरे धीरे छीटाकशी तक आ गई है । पराशर जी , शाहनवाज़ भाई और हिन्दी विभाग के सी आर का नाम लिया गया। मामला पहले एच ओ डी तक पहुँचा फ़िर आपके विभाग तक । आप ऐसा मान लीजिये की इस ख़बर को न लिखे जाने की मुझे आलाकमान की और से हिदायत मिली है। और आलाकमान से जितनी आपकी फटती है उतनी मेरी भी । सो माफ़ कीजिएगा नाम तो नही बता सकता हूँ पर ये जरुर बता सकता हूँ की कम से कम ६ लोग इस शिकायतकर्ता थे । आर टीवी और हिन्दी दोनों विभागों से थे और कुछ की आँखों में आंसू थे जो गायकी के मर्म से फूट पड़े थे।

मेरी अपनी राय यही है की यह ठीक हुआ , अगर किसी चीज़ से हमारा आपका चरित्र नीचे गिरता हो तो उसे छोड़ देने में ही भलाई है। भविष्य में कोई आहात या चोटिल होता या कोई झगडा होता , तो हमें ही बुरा लगता ।

शुक्रिया बहुत बहुत शुक्रिया

लगता है मेरा प्रयास रंग ला रहा है। आप आई आई एम् सी के पटाखे ब्लॉग पढ़ रहे हो ऐसा जान के अच्छा लगा। परीक्षित जी ने टिप्पणी लिखी , शिकायत थी कुछ क्रोध भरी , पर फिर भी शिकायत का भी शुक्रिया। मैं मानता हूँ की पाण्डेय जी ने माना की कविता उनकी नही थी पर मित्रों मेरा कहना है की वो ग़लत इंसान नही हैं

अब बात आती है निर्मोही होने की तो मैं ये बता दूँ की निर्मोही मैं खुशी से नही बदकिस्मती से बना हूँ। आप मेरी जीवन गाथा पढेंगे तो आप भी नही कहेंगे किसी को निर्मोही। मैं निर्मोही हूँ जरुर लेकिन बना रहना नही चाहता । निर्मोही होना मर्ज़ है मर्ज़ी नही !

इसके बाद की बातें , अब ब्लॉग पर दिवाली की छुट्टियों के दौरान होंगी... कुछ दिल टूट गए हमारे आई आई एम् सी में और कुछ दिल मिल गए सो उनकी कहानी होगी इस दिवाली।

कुलदीप जी से भी मुझे kuch कहना है । कुलदीप जी को लगता है की ये ब्लॉग एक झूठा ब्लॉग है इसकी कोई जिम्मेदारी नही है...तो उन्हें बता दूँ की जिम्मेदारी तो आज तक सरकार ने देश की नही ली ये तो मात्र एक ब्लॉग है सो जिम्मेदारी के लिए परेशान न हो गैर जिम्मेदाराना बातें यहाँ नही होंगी। और इसका नमूना आपको अगले ब्लॉग में मिल जाएगा।

रविवार, 4 अक्तूबर 2009

मुझे कन्वीनर बना do

इधर कुछ दिनों पहले हमारे आई आई एम् सी में एक नया शगूफा छूटा । बात कुछ यूँ हुई की कल्चरल कमिटी के गठन की कुछ बात हवा में उडी। और जल्द ही ये सामने भी आया की की अंग्रेजी विभाग के संजय जी को सर्वसम्मिति से इस कमिटी का अध्यक्ष चुन लिया गया है। संजय जी ने हर्ष भाव से ख़बर समस्त संसथान में पहुँचा दी लेकिन हाय रे नियति की उस से संजय बाबु की खुशियाँ न देखि जा सकी। इस निर्णय के आने से सर्वप्रथम , आपको लगेगा की हिन्दी विभाग या रेडियो वाले क्रांतिकारियों को दिक्कत हुई होगी लेकिन नही दिक्कत तो अंग्रेजी विभाग वालों को ही थी। पता नही संजय जी के बताने में घमंड था या सुनने वालों के कानो में, इस निर्णय को लोकतान्त्रिक अधिकारों पर हमला मान लिया गया। और अनेक सेनानी उतर आए संजय जी के ख़िलाफ़ इस अजीब सी जंग में जिसका कोई कारण नही tha।
योधाओं में सबसे पहले अंग्रेजी विभाग के लडाकों का नाम आना चाहिए क्यूंकि उनके प्रयास के बगैर तो जंग शुरू ही नही होती। वाही तो थे जिन्होंने संजय जी की सत्ता को अस्वीकार कर दिया था। फ़िर नाम लेंगे हिन्दी विभाग का , यहाँ के सुरमा ऐसे बलवान थे की प्रत्यछ रूप से सामने आए और एक योद्धा जो शायद कुछ न समझ में aane के कारण ही मारा जा रहा tha यानी अपने सुशांत जी। सुनने में आया की इनके संजय जी से बड़े ख़ास सम्बन्ध थे लेकिन फिर भी जा लड़े.... पूछो कोई जन्नाब से की भइया आर टीवी की सत्ता काफ़ी नही थी की आ गए यहाँ मुह ताकते....इन्हे भी कन्वीनर बनना था क्या बने वो इनकी क्लास को पता है ।
खैर बात चल रही थी सत्ता की तो भइया सत्ता का खेल कुछ ऐसा खिला ऐसा खिला की आनंद जी को ही हस्त्षेप करना पड़ा वरना यहाँ तो खून की नदिया बह जाती। खैर सत्ता तो किसी को ना मिली उल्टे सब अपना ही पैजामा सँभालते रह गए। सुनने में आया की आर टीवी की तो कुछ ऐसी उतरी की फिर कहीं नजर नही आए , और हिन्दी विभाग को कोई प्रधान सांप सूंघ गया। एड पि आर वाले तो हमेशा से ही वैरागी रहे हैं और सुना है संजय जी की चुनरी का दाग अभी धुला नही है।

अगली कहानी में खोलेंगे उस नकाबपोश का चेहरा जिसने हिन्दी विभाग के गानों पर लगा दी पाबन्दी और बात करेंगे उन टांगो की जिन पर कुछ सीनों से कपड़ा नही है।

शनिवार, 3 अक्तूबर 2009

पाण्डेय जी की कविता.

कुछ सुना क्या? पाण्डेय जी चोर हैं! कविता चोर ! अरे बिल्कुल वही जिन्हें इनाम मिला है ! ऐसा कहना है उन लोगों का जो या तो पाण्डेय जी से वाकिफ नही है। या फिर उनसे घबरा गए हैं और अब इस तरह की ऊल जुलूल बातें कर रहे हैं!

ऐसा नही की ये इन्सान कोई देवता है और ग़लत काम कर नही ग़लत काम करने की कोई वजह तो होनी चाहिए। ऐसा नही है की मैं पाण्डेय जी का कोई purana mitra या shubhchintak hun bas बात ye है की उनकी जीवनगाथा से भली bhaanti parichit hun isliye उनके khilaf कुछ सुनना अजीब लगा। मैंने unhe कभी एक कवि के रूप me नही जाना लेकिन ये jarur जानता hun की इस इंसान ने कभी कोई ग़लत काम नही किया । unhe kareeb से janiye उनसे हार कर भी आपको जीत का ehsas होगा।

IIMC ke pathake hai kya?

खैर भाई लोगो जैसा की नाम से ही जाहिर है की आई आई एम् सी के पटाखे मतलब आई आई एम् सी की वो खबरे जो इधर कुछ चर्चा में थी पर जिन पर चर्चा नही हो सकी। आप की बात आपके साथ ( ये मत सोचने लगना की रजत शर्मा का कोई चेला चपता हूँ। अरे मै तो बस आप सभी का मित्र हूँ और अपने जेहन मे कुछ ख़ास ख़ास बातें रखता हूँ। तो बकचो **** मेरा मतलब बातचीत शुरू करें।

बातचीत या यूँ कह लीजिये बकचो** के कुछ नियम हैं।
१ किसी को दुआ सलाम नही। बस प्योर बकचो** समझे।
२ और अपनी ख़बर पर अपमानित महसूस न करें मैदान आप के लिए भी खुला है , खुल कर अपनी बात बोलिए।

शुरू हो बक** मेरा मतलब बातचीत ।

आई आई एम् सी के पटाखे ***